व्हर्लपूल कॉर्पोरेशन, जो व्हर्लपूल ऑफ इंडिया की मालिक कंपनी है, भारत में अपनी हिस्सेदारी को 31% तक बेचने की योजना बना रही है। इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के अनुसार, इस बिक्री से कंपनी का लक्ष्य लगभग 550-600 मिलियन डॉलर जुटाना है। इस सौदे के बाद भी व्हर्लपूल कॉर्पोरेशन के पास भारतीय यूनिट में 20% हिस्सेदारी रहेगी और भारतीय यूनिट को पहले से ज़्यादा आज़ादी से काम करने का मौका मिलेगा। इस हिस्सेदारी को खरीदने के लिए कई बड़ी प्राइवेट इक्विटी कंपनियाँ जैसे एडवेंट इंटरनेशनल, बेन कैपिटल, टीपीजी, ईक्यूटी, कार्लाइल और केकेआर दिलचस्पी दिखा रही हैं। गोल्डमैन सैक्स इस पूरी प्रक्रिया में व्हर्लपूल कॉर्पोरेशन की मदद कर रहा है। कंपनी का कहना है कि इस कदम से व्हर्लपूल ऑफ इंडिया तेज़ी से विकास पर ध्यान दे पाएगी और अपने संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कर पाएगी।
मुख्य जानकारी :
इस खबर का सबसे ज़रूरी पहलू यह है कि व्हर्लपूल कॉर्पोरेशन अब व्हर्लपूल ऑफ इंडिया में अपनी पकड़ कम करना चाहती है। पहले कंपनी की 51% हिस्सेदारी थी, जिसे अब घटाकर 20% करने की योजना है। इसका मतलब है कि भारतीय यूनिट को अपने फैसले लेने में ज़्यादा स्वतंत्रता मिलेगी। प्राइवेट इक्विटी कंपनियों की दिलचस्पी यह दिखाती है कि वे भारतीय बाजार की संभावनाओं को लेकर उत्साहित हैं, खासकर घरेलू उपकरणों के क्षेत्र में। यह भी मुमकिन है कि दो या ज़्यादा फंड मिलकर यह हिस्सेदारी खरीदें, क्योंकि व्हर्लपूल कॉर्पोरेशन अभी भी सबसे बड़ा शेयरधारक बने रहना चाहता है। अगर कोई कंपनी 26% या उससे ज़्यादा हिस्सेदारी खरीदती है, तो उसे ओपन ऑफर भी लाना पड़ सकता है।
निवेश का प्रभाव :
इस खबर का निवेशकों पर मिला-जुला असर हो सकता है। एक तरफ, व्हर्लपूल ऑफ इंडिया को ज़्यादा आज़ादी मिलने और नए निवेशकों के आने से कंपनी के विकास को गति मिल सकती है, जिससे शेयर की कीमत बढ़ सकती है। दूसरी तरफ, पैरेंट कंपनी द्वारा हिस्सेदारी बेचने की खबर से शेयर में कुछ समय के लिए दबाव भी देखने को मिल सकता है, जैसा कि पिछली बार हिस्सेदारी बेचने की घोषणा के बाद हुआ था। निवेशकों को कंपनी के प्रदर्शन, बाजार की स्थितियों और नए निवेशकों की रणनीतियों पर ध्यान देना होगा। यह भी देखना होगा कि कंपनी इस नई आज़ादी का इस्तेमाल कैसे करती है और क्या यह विकास को बढ़ावा दे पाती है।