छह यूरोपीय संघ के देशों – पोलैंड, एस्टोनिया, लिथुआनिया, लातविया, रोमानिया और स्लोवाकिया – ने रूस से आने वाले तेल पर G7 द्वारा लगाई गई मूल्य सीमा को कम करने का आह्वान किया है।
क्या है यह मूल्य सीमा?
दिसंबर 2022 में, G7 देशों (अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और ब्रिटेन), यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया ने रूसी तेल पर एक मूल्य सीमा तय की थी। इसका मकसद था यूक्रेन पर हमले के बाद रूस को मिलने वाले पैसे को कम करना, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित करना कि दुनिया में तेल की कमी न हो।
क्यों कम करना चाहते हैं ये देश मूल्य सीमा?
इन छह देशों का मानना है कि वर्तमान मूल्य सीमा ($60 प्रति बैरल) बहुत ज़्यादा है और इससे रूस को अभी भी बहुत पैसा मिल रहा है। वे चाहते हैं कि इस सीमा को और कम किया जाए ताकि रूस की आय कम हो और उसे युद्ध के लिए पैसे जुटाने में मुश्किल हो।
क्या होगा इसका असर?
अगर मूल्य सीमा कम होती है, तो रूस को तेल बेचने से कम पैसा मिलेगा। इससे रूस की अर्थव्यवस्था कमजोर हो सकती है और युद्ध को जारी रखना उसके लिए मुश्किल हो सकता है। दूसरी तरफ, इससे दुनिया में तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे महंगाई बढ़ सकती है।
मुख्य जानकारी :
- यूरोपीय संघ के भीतर रूस पर प्रतिबंधों को लेकर मतभेद हैं। कुछ देश सख्त प्रतिबंध चाहते हैं, जबकि कुछ देशों को अपनी अर्थव्यवस्था की चिंता है।
- रूस पर दबाव बनाने के लिए पश्चिमी देश एकजुट हैं, लेकिन इस दबाव का कितना असर होगा, यह कहना मुश्किल है।
- तेल की कीमतें दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक महत्वपूर्ण कारक हैं। मूल्य सीमा में बदलाव से तेल बाजार में उतार-चढ़ाव आ सकता है।
निवेश का प्रभाव :
- तेल और गैस कंपनियों के शेयरों पर नज़र रखें, क्योंकि मूल्य सीमा में बदलाव से इनके शेयरों में उतार-चढ़ाव हो सकता है।
- ऊर्जा क्षेत्र में निवेश करने से पहले सावधानी बरतें, क्योंकि यह क्षेत्र अभी अनिश्चितता से भरा हुआ है।
- वैश्विक अर्थव्यवस्था और भू-राजनीतिक घटनाक्रमों पर नज़र रखें, क्योंकि ये घटनाएं बाजार को प्रभावित कर सकती हैं।