कल अमेरिका में कच्चे तेल (crude oil) की कीमतों में ज़बरदस्त उछाल देखने को मिला। तेल के वायदा कारोबार (futures trading) में 3 डॉलर प्रति बैरल से ज़्यादा की बढ़ोतरी हुई, जिससे ब्रेंट क्रूड (Brent crude) जुलाई 2024 के बाद से अपने सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच गया।
इस तेज़ी के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं, जैसे:
- अमेरिका में तेल भंडार में कमी: अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन (EIA) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले हफ़्ते कच्चे तेल का भंडार 4.3 मिलियन बैरल घट गया, जबकि विश्लेषकों को 1.1 मिलियन बैरल की कमी का अनुमान था।
- डॉलर में कमज़ोरी: अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अन्य मुद्राओं में मज़बूती आने से तेल सस्ता हो गया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इसकी माँग बढ़ी है।
- चीन में माँग में बढ़ोतरी: चीन में कोविड प्रतिबंधों में ढील के बाद तेल की माँग में तेज़ी आने की उम्मीद है।
मुख्य जानकारी :
तेल की कीमतों में यह उछाल भारतीय बाज़ार के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत अपनी ज़रूरत का ज़्यादातर तेल आयात करता है। इससे पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिसका असर महंगाई पर पड़ सकता है।
निवेश का प्रभाव :
- ऊर्जा कंपनियों के शेयर: तेल की बढ़ती कीमतों से ONGC और Reliance Industries जैसी ऊर्जा कंपनियों के शेयरों में तेज़ी देखने को मिल सकती है।
- ऑटोमोबाइल और एविएशन क्षेत्र: तेल की कीमतें बढ़ने से वाहनों और हवाई जहाज़ों के ईंधन का खर्च बढ़ेगा, जिससे इन क्षेत्रों की कंपनियों के मुनाफ़े पर असर पड़ सकता है।
- महंगाई: तेल की बढ़ती कीमतों से कई चीज़ों के दाम बढ़ सकते हैं, जिससे महंगाई बढ़ सकती है। इसका असर RBI के ब्याज दरों पर फैसले पर भी पड़ सकता है।
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