आजकल बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। ब्रेंट क्रूड और वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) दोनों ही लगभग 2 डॉलर प्रति बैरल से ज़्यादा गिर गए हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि ओपेक+ (OPEC+) नाम का जो देशों का समूह तेल का उत्पादन करता है, वह आगे चलकर तेल के उत्पादन को और भी तेज़ी से बढ़ाने की सोच रहा है। पहले से ही यह समूह धीरे-धीरे उत्पादन बढ़ा रहा था, लेकिन अब खबरें आ रही हैं कि वे इस गति को और तेज़ कर सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो बाजार में तेल की सप्लाई ज़्यादा हो जाएगी और इसीलिए कीमतें नीचे आ रही हैं।
मुख्य जानकारी :
इस खबर में सबसे ज़रूरी बात यह है कि ओपेक+ देशों का रवैया बदल रहा है। पहले वे तेल की कीमतों को बढ़ाने के लिए उत्पादन को कम रखने पर ज़ोर दे रहे थे। लेकिन अब, शायद दुनिया भर में तेल की बढ़ती मांग को देखते हुए या फिर कुछ देशों के दबाव में, वे ज़्यादा तेल बेचने के लिए तैयार हो रहे हैं। इस बदलाव का सीधा असर तेल कंपनियों और उन देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है जो तेल बेचकर पैसा कमाते हैं। अगर उत्पादन बढ़ता है, तो तेल की कीमतें और नीचे जा सकती हैं, जिससे इन कंपनियों और देशों की कमाई कम हो सकती है। दूसरी तरफ, जो देश तेल खरीदते हैं, जैसे कि भारत, उन्हें इसका फायदा हो सकता है क्योंकि उनके लिए तेल सस्ता हो जाएगा।
निवेश का प्रभाव :
निवेशकों के लिए इस खबर का मतलब यह है कि तेल और गैस कंपनियों के शेयरों में थोड़ा दबाव देखने को मिल सकता है। अगर तेल की कीमतें गिरती हैं, तो इन कंपनियों का मुनाफा भी कम हो सकता है, जिससे उनके शेयर की कीमतें नीचे जा सकती हैं। हालांकि, यह उन उद्योगों के लिए अच्छी खबर हो सकती है जो तेल को कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल करते हैं, जैसे कि पेंट बनाने वाली कंपनियां या ट्रांसपोर्ट कंपनियां, क्योंकि उनकी लागत कम हो जाएगी। इसके अलावा, अगर तेल सस्ता होता है तो इसका असर महंगाई पर भी पड़ सकता है, जिससे आम लोगों को थोड़ी राहत मिल सकती है और दूसरी तरह के उद्योगों को भी फायदा हो सकता है। निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे इस खबर पर ध्यान दें और देखें कि बाजार किस तरह से प्रतिक्रिया करता है। अपने निवेश के फैसले सोच-समझकर ही लें।
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