सरकारी स्वामित्व वाली जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (जीआईसी रे) ने वित्त वर्ष 2023-24 में अनिवार्य पुनर्बीमा व्यवसाय से लगभग ₹1500 करोड़ का प्रीमियम इकट्ठा किया है। यह प्रीमियम उन व्यवसायों का हिस्सा है जिसे भारत की गैर-जीवन बीमा कंपनियों को कानून के तहत जीआईसी रे को पुनर्बीमा करना होता है। भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भी इस अनिवार्य सत्र को 4% पर बरकरार रखा है। इसका मतलब है कि गैर-जीवन बीमा कंपनियों को अपनी प्रत्येक पॉलिसी के कुल बीमा राशि का 4% जीआईसी रे के साथ पुनर्बीमा करना होगा, आतंकवाद बीमा और परमाणु पूल को छोड़कर। कुछ खास तरह के बीमा जैसे मोटर थर्ड-पार्टी, तेल और ऊर्जा बीमा, समूह स्वास्थ्य बीमा और फसल बीमा के लिए यह अनिवार्य सत्र अलग-अलग है।
मुख्य जानकारी :
यह खबर दिखाती है कि अनिवार्य पुनर्बीमा जीआईसी रे के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है। हालाँकि, वित्त वर्ष 24 में अनिवार्य व्यवसाय से राजस्व का हिस्सा वित्त वर्ष 23 के 43% से घटकर अप्रैल-अक्टूबर वित्त वर्ष 25 में 39% हो गया है, जबकि गैर-अनिवार्य व्यवसाय का हिस्सा बढ़ गया है। गैर-जीवन बीमा कंपनियां लंबे समय से इस अनिवार्य सत्र को पूरी तरह से खत्म करने या कम करने की मांग कर रही हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि जीआईसी रे द्वारा दिया जाने वाला कमीशन उनकी लागत संरचना को नहीं दर्शाता है। आईआरडीएआई ने यह भी साफ किया है कि जीआईसी रे और बीमा कंपनियां आपस में सहमति से निर्धारित सीमा से ऊपर कमीशन तय कर सकती हैं।
निवेश का प्रभाव :
जीआईसी रे के लिए यह अनिवार्य प्रीमियम एक स्थिर आय का स्रोत है। निवेशकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि हालांकि यह आय सुनिश्चित है, लेकिन गैर-जीवन बीमा कंपनियों की मांग है कि इस अनिवार्य हिस्से को कम किया जाए। अगर भविष्य में ऐसा होता है, तो जीआईसी रे की प्रीमियम आय पर असर पड़ सकता है। फिलहाल, आईआरडीएआई ने वित्त वर्ष 26 के लिए भी इसे 4% पर बनाए रखा है, जिससे जीआईसी रे को निकट भविष्य में स्थिर आय मिलती रहेगी। निवेशकों को कंपनी के गैर-अनिवार्य व्यवसाय की वृद्धि पर भी ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यह कंपनी के भविष्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण होगा।