वेनेजुएला की सरकारी तेल कंपनी पीडीवीएसए ने अमेरिकी कंपनी शेवरॉन को तेल भरने की कुछ अनुमतियाँ रद्द कर दी हैं। रॉयटर्स के अनुसार, तीन अज्ञात सूत्रों ने यह जानकारी दी है। रद्द की गई अनुमतियों में दो ऐसे टैंकर शामिल हैं जिनमें पहले से ही तेल भरा जा चुका था, जिसका मतलब है कि उन्हें वापस बंदरगाह पर लौटना होगा। एक तीसरी अनुमति ऐसे टैंकर के लिए थी जिसमें अभी तक तेल नहीं भरा गया था। पीडीवीएसए और शेवरॉन दोनों ने इस खबर पर तुरंत कोई टिप्पणी नहीं की है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब हाल ही में अमेरिकी सरकार ने वेनेजुएला के तेल और गैस क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों के लिए कुछ लाइसेंस रद्द कर दिए हैं।
मुख्य जानकारी :
इस खबर का सबसे ज़रूरी पहलू यह है कि यह वेनेजुएला के तेल निर्यात और शेवरॉन के संचालन को प्रभावित कर सकता है। जिन दो टैंकरों को वापस लौटना पड़ेगा, उनसे तेल की आपूर्ति में देरी हो सकती है। इसके अलावा, भविष्य में शेवरॉन के लिए वेनेजुएला से तेल उठाना मुश्किल हो सकता है अगर पीडीवीएसए आगे भी इस तरह की कार्रवाई करता है। यह घटनाक्रम अमेरिकी सरकार द्वारा वेनेजुएला पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद हो रहा है, जिसका मकसद राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की सरकार पर दबाव डालना है। शेवरॉन उन कुछ विदेशी कंपनियों में से एक थी जिन्हें अभी भी वेनेजुएला में काम करने की अनुमति मिली हुई थी, इसलिए इसकी गतिविधियों में कोई भी रुकावट वेनेजुएला के तेल उत्पादन और निर्यात के लिए एक बड़ा झटका हो सकती है। इससे अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में भी थोड़ी अस्थिरता आ सकती है।
निवेश का प्रभाव :
निवेशकों के लिए इस खबर का मतलब है कि वेनेजुएला के तेल क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों पर और दबाव बढ़ सकता है। शेवरॉन के शेयरों में थोड़ी गिरावट आ सकती है, खासकर अगर भविष्य में उसके वेनेजुएला में संचालन पर और पाबंदियाँ लगती हैं। दूसरी ओर, अन्य तेल उत्पादक देशों की कंपनियों को इसका फायदा मिल सकता है क्योंकि वेनेजुएला से आपूर्ति कम होने पर मांग बढ़ सकती है। भारतीय निवेशकों को इस खबर पर नज़र रखनी चाहिए क्योंकि अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों में कोई भी बदलाव भारत की अर्थव्यवस्था और यहाँ की तेल कंपनियों को प्रभावित कर सकता है। अगर तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो भारत में महंगाई बढ़ सकती है और तेल आयात करने वाली कंपनियों की लागत भी बढ़ सकती है। इसलिए, इस खबर को वैश्विक तेल बाजार के रुझानों और भारत की आर्थिक नीतियों के साथ जोड़कर देखना ज़रूरी है।