डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने प्रशासन को ‘क्लीन कोल’ तकनीक का उपयोग करके ऊर्जा उत्पादन तुरंत शुरू करने का आदेश दिया है। उनका मानना है कि यह तकनीक कोयले को पर्यावरण के लिए कम हानिकारक तरीके से जलाने में मदद करेगी। ट्रम्प का यह कदम अमेरिका को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाने और कोयला उद्योग को बढ़ावा देने के लिए है। ‘क्लीन कोल’ तकनीक में कोयले को जलाने से निकलने वाली हानिकारक गैसों को कम करने के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। हालाँकि, इस तकनीक की लागत और प्रभावशीलता पर अभी भी बहस जारी है। इस आदेश का उद्देश्य कोयला खदानों में रोजगार बढ़ाना और ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करना है। कुछ पर्यावरणविदों का मानना है कि यह कदम जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों को नुकसान पहुंचा सकता है, जबकि कोयला उद्योग से जुड़े लोग इसे एक सकारात्मक विकास मानते हैं। भारत में भी कोयले से ऊर्जा उत्पादन एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, और इस तरह की तकनीकें भविष्य में भारत के लिए भी उपयोगी हो सकती हैं।
मुख्य जानकारी :
ट्रम्प का यह आदेश कोयला उद्योग को फिर से जीवित करने का प्रयास है। ‘क्लीन कोल’ तकनीक का उपयोग करके, वह कोयले को पर्यावरण के लिए कम हानिकारक बनाने का दावा कर रहे हैं। इस तकनीक में कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं, जो कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल में जाने से रोकती हैं। इस आदेश का असर अमेरिका के ऊर्जा बाजार और पर्यावरण नीतियों पर पड़ेगा। यह देखना होगा कि यह तकनीक कितनी प्रभावी होती है और क्या यह कोयला उद्योग को टिकाऊ बना पाती है। इस आदेश का असर वैश्विक ऊर्जा बाजार पर भी पड़ सकता है, खासकर उन देशों पर जो कोयले पर निर्भर हैं।
निवेश का प्रभाव :
अगर ‘क्लीन कोल’ तकनीक सफल होती है, तो कोयला कंपनियों और संबंधित उद्योगों में निवेश के अवसर बढ़ सकते हैं। हालांकि, निवेशकों को इस तकनीक की लागत और पर्यावरणीय प्रभाव को ध्यान में रखना चाहिए। पर्यावरण के प्रति जागरूक निवेशक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश करना पसंद कर सकते हैं। भारत जैसे विकासशील देशों में, जहां ऊर्जा की मांग बढ़ रही है, इस तकनीक का अध्ययन किया जा सकता है। निवेशकों को ऊर्जा क्षेत्र में नीतिगत बदलावों और तकनीकी विकास पर नजर रखनी चाहिए। यह आदेश अमेरिका के ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव ला सकता है, जिसका असर वैश्विक ऊर्जा बाजार पर भी पड़ेगा।
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