सेंट गोबेन इंडिया ने मलेशिया से आने वाले साफ फ्लोट ग्लास के आयात पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी की सूर्यास्त समीक्षा शुरू की है। इसका मतलब है कि भारत सरकार यह जांच करेगी कि क्या मलेशिया से सस्ते दाम पर ग्लास का आयात भारतीय ग्लास उद्योग को नुकसान पहुंचा रहा है। एंटी-डंपिंग ड्यूटी एक तरह का टैक्स है जो सरकार उन देशों से आयातित सामानों पर लगाती है जो अपने सामानों को घरेलू बाजार में बहुत कम कीमत पर बेचते हैं। इससे घरेलू उद्योगों को विदेशी कंपनियों से होने वाले अनुचित प्रतिस्पर्धा से बचाया जा सकता है। यह समीक्षा इसलिए की जा रही है क्योंकि पहले लगाई गई ड्यूटी की अवधि खत्म होने वाली है। सरकार यह देखेगी कि क्या इस ड्यूटी को आगे भी जारी रखना चाहिए या नहीं। इस समीक्षा में यह पता लगाया जाएगा कि अगर ड्यूटी हटा ली जाती है, तो क्या मलेशियाई ग्लास का आयात फिर से भारतीय बाजार को नुकसान पहुंचाएगा। इस जांच में भारतीय ग्लास निर्माताओं, आयातकों और उपभोक्ताओं से भी जानकारी ली जाएगी।
मुख्य जानकारी :
इस खबर का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि भारतीय ग्लास उद्योग अपनी सुरक्षा के लिए सरकार से मदद मांग रहा है। सेंट गोबेन इंडिया का मानना है कि मलेशियाई कंपनियां अपने ग्लास को भारत में बहुत कम कीमत पर बेच रही हैं, जिससे भारतीय ग्लास निर्माताओं को नुकसान हो रहा है। अगर एंटी-डंपिंग ड्यूटी हटा दी जाती है, तो मलेशियाई ग्लास का आयात और भी बढ़ सकता है, जिससे भारतीय ग्लास उद्योग को और भी नुकसान होगा। इस समीक्षा का परिणाम भारतीय ग्लास बाजार के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। अगर सरकार ड्यूटी को जारी रखने का फैसला करती है, तो भारतीय ग्लास निर्माताओं को राहत मिलेगी। लेकिन अगर ड्यूटी हटा दी जाती है, तो उन्हें कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा।
निवेश का प्रभाव :
इस खबर का असर भारतीय ग्लास कंपनियों के शेयरों पर पड़ सकता है। अगर सरकार एंटी-डंपिंग ड्यूटी को जारी रखती है, तो सेंट गोबेन इंडिया और अन्य भारतीय ग्लास कंपनियों के शेयरों में तेजी आ सकती है। लेकिन अगर ड्यूटी हटा दी जाती है, तो इन कंपनियों के शेयरों में गिरावट आ सकती है। निवेशकों को इस समीक्षा के नतीजों पर नजर रखनी चाहिए और उसके अनुसार अपने निवेश के फैसले लेने चाहिए। इसके अतिरिक्त, इस खबर का असर निर्माण और रियल एस्टेट क्षेत्र पर भी पड़ सकता है, क्योंकि ग्लास इन क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण सामग्री है।
स्रोत:
- (अंग्रेजी) Economic Times Article
- (अंग्रेजी) Business Standard Article